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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।

अथवा
जैन दर्शन के 'स्याद्वाद सिद्धांत' की व्याख्या कीजिए। अथवा
जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं? अथवा
जैन दर्शन के अनेकान्तवाद की व्याख्या कीजिए। अथवा
जैन दर्शन के 'स्याद्वाद' की विवेचना कीजिए। अथवा
जैन दर्शन के अनेकान्त विचार की विवेचना कीजिए। अथवा
जैन दर्शन के स्याद्वाद की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए। अथवा
जैन दर्शन के 'स्याद्वाद सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिये। अथवा
जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए। अथवा
सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।

उत्तर -

जैन दर्शन में स्याद्वाद

स्याद्वाद सप्त भंगनीय जैन दर्शन में 'नय' का महत्वपूर्ण स्थान है जैन विद्वानों के अनुसार, जब तक "केवल ज्ञान" नहीं मिल जाता तब तक संसार की किसी भी वस्तु का ज्ञान हमें उसकी पूर्णता में नहीं होता है।

जैन विद्वानों के अनुसार, किसी वस्तु या विषय के सम्बन्ध में जो हमारा नय या परामर्श होता है वह सभी दृष्टिकोण से सत्य नहीं होता तथा उसकी सत्यता 'नय विचार' पर निर्भर करती है। कुछ व्यक्ति अपने आंशिक ज्ञान (नय) को ही सत्य मानते हैं जैन दर्शन के अनुसार, एक ही वस्तु का ज्ञान कई तरह का हो सकता है और सभी ज्ञान केवल आंशिक रूप से सत्य होते हैं पूर्णरूप से नहीं।

स्याद्वाद अथवा अनेकान्तवाद

स्याद्वाद शब्द का निर्माण (स्यात्) शब्द के 'वाद' को जोड़ने से हुआ जैन दर्शन में एक वस्तु में कई धर्म पाये जाते हैं और ज्ञान भी भिन्न-भिन्न होते है। जैनियों के अनुसार, कोई बात प्रसंग में सही होती है तो दूसरे प्रसंग में वह गलत भी हो सकती है। जैनी सम्प्रदाय ने दूसरे सम्प्रदायों को उदार दृष्टिकोण से देखा है।

जैन विद्वानों के अनुसार, प्रत्येक नये विचार आंशिक रूप से सत्य होता है और आंशिक रूप से गलत इसलिए किसी भी निर्णय के लिए अथवा किसी भी 'नय' का प्रारम्भ में 'स्यात्' शब्द का प्रयोग करना चाहिए।

स्यात् शब्द को जोड़कर किसी वाक्य को अनेक धर्मों अथवा गुणों से परिपूर्ण कर देना ही जैनों के द्वारा 'स्याद्वाद' के सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है।

'स्यादवाद' की व्याख्या के लिए सात वाक्यों का प्रयोग किया जाता है जिसे सप्त भंगीनय के नाम से जाना जाता है।

जैन दर्शन के सात वाक्य है

ये सात वाक्य निम्न हैं-

1. स्यात् है (शायद घड़ा है)।

2. स्यात् नहीं है (शायद घड़ा नहीं है)।

3. स्यात् है और नहीं भी है (शायद घड़ा है और नहीं भी है)।

4. स्यात् अवक्तव्य है (शायद घड़ा है और वह ऐसा है जिसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता)।

5. स्यात् है और अवक्तव्य भी है (शायद घड़ा है, और वह ऐसा है, जिसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता )।

6. स्यात् नहीं है और अवक्तव्य भी है (शायद घड़ा नहीं है, और वह ऐसा है, जिसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता)।

7. स्यात् है, नहीं है और अवक्तव्य भी है (शायद घड़ा है, नहीं भी है और वह ऐसा है, जिसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता )।

पहला वाक्य - इस वाक्य से किसी वस्तु का भावात्मक स्वरूप बतलाया जाता है इसे अस्तिवाचक भी कहा जा सकता है।

दूसरा वाक्य - शायद घड़ा नहीं है इसका अर्थ यह नहीं निकलता कि कोठरी के भीतर कोई भी घड़ा नहीं है या कोई घड़ा वहाँ पर हो ही नहीं सकता।

तीसरा वाक्य - इस वाक्य को संयुक्त परामर्श या संयुक्त रूप कहा जाता है इसका होना इसलिए आवश्यक है कि कभी घड़ा लाल हो सकता है कभी दूसरे रंग का।

चौथा वाक्य - इस वाक्य के अनुसार, एक समय में एक ही स्थान पर घड़े की सत्ता और उसके दूसरे रूप की सत्ता दोनों के प्रधान होने से अव्यक्त बन जाता है अर्थात् अभी घड़ा कच्चा है इसलिए काला है और जब यह पक जायेगा लाल हो जायेगा।

पाँचवाँ वाक्य - पाँचवें वाक्य के विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता इसका अर्थ है कि घड़ें के द्रव्य रूप को देखें तो घड़ा है और उसके द्रव्य रूप और उसके बदलते रूप दोनों को एक समय में देखें तो वह ऐसी वस्तु है जिसके विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।

छठा वाक्य - इसमें नय के अनुसार, स्यात् नहीं है तथा यह भी ऐसा है जिसके विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।

सातवाँ वाक्य - इस वाक्य में द्रव्य के पर्यायों के एक होने और फिर अलग-अलग होने के कारण घड़े का अस्तित्व बनता बिगड़ता रहता है।

स्याद्वाद का महत्व

जैन दर्शन में स्यादवाद का सिद्धान्त सम्पूर्ण दर्शन सिद्धान्त का मेरुदण्ड है तथा जैन दर्शन का तत्वज्ञान इसी सिद्धान्त पर निर्भर है। इसके अनुसार किसी वस्तु के अनेक गुणों पर विश्वास किया जाता है चाहे उसमें सत्यता कम ही क्यों न हो। स्याद्वाद के अनुसार हम किसी वस्तु के विषय में पूर्ण नहीं जान सकते जैन दर्शनशास्त्र ने एकान्तवाद का विरोध किया व अनेकान्तवाद का समर्थन किया इसे स्यादवाद के नाम से जाना जाता है अपने स्यादवाद के सिद्धान्त के कारण जैन धर्म में बहुत उदारता पायी जाती है यह जैन दर्शन की विशेष योग्यता है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी स्याद्वाद सिद्धान्त बहुत महत्वपूर्ण है इसके अनुसार, हमारा ज्ञान चूँकि सदैव सत्य नहीं होता अतः हमें दूसरे सिद्धान्तों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। यह हमें हठधर्मी से बचाता है तथा विरोधियों से लडने की बजाय उनसे प्रेम करना सिखाता है तथा मानव कल्याण में सहायता देता है।

पाश्चात्य दर्शनशास्त्र में स्याद्वाद के सिद्धान्त की महत्ता को स्वीकार किया गया है उनके अनुसार, किसी विचार के प्रसंग में स्थान, काल, दशा, गुण आदि अनेक बातें छिपी रहती है। उन सबका ' प्रभाव विचार प्रसंग पर पड़ता है जिससे सत्यता प्रकट होती है।

स्याद्वाद की तुलना पाश्चात्य सिद्धान्त के सापेक्षवाद सिद्धान्त से भी की जाती है। सापेक्ष सिद्धान्त यह बताता है कि मनुष्य अपने पुत्र का पिता है वह अपने पुत्र का कभी भी पुत्र नहीं हो सकता परन्तु वह पिता का पुत्र अवश्य होता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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